चीन के एक फैसले से थम सकती हैं कारें, लौट सकता है बस-टेंपो का जमाना

एक वक्त था जब गांव की गलियों में टेंपो की खड़-खड़ और बस की छुक-छुक आम बात थी। फिर आए चमचमाते शोरूम, EMI पर गाड़ियाँ और हर घर में Swift या Vitara का सपना। लेकिन अब लगता है वो पुराना जमाना फिर लौट सकता है। वजह? चीन ने एक ऐसा दांव खेला है जिससे कार कंपनियों के पसीने छूट गए हैं।

रेयर अर्थ मैग्नेट की सप्लाई पर चीन का ब्रेक

कार प्रोडक्शन में झटका देने वाला चीन का ये फैसला 4 अप्रैल को सामने आया। अब से चीन से 7 अहम रेयर अर्थ मैग्नेट एक्सपोर्ट करने के लिए खास परमिट चाहिए होगा। ये रेयर मटेरियल हैं – समेरियम, गेडोलिनियम, टर्बियम, डिस्प्रोसियम, लुटेटियम, स्कैंडियम और यट्रियम। ये सब नाम भले ही आपको बोरिंग लगें, लेकिन इनके बिना न Swift चलेगी न EV Vitara।

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इन रेयर अर्थ मैग्नेट का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक मोटर्स, AC मोटर्स और कारों के स्टार्टर मोटर्स में होता है। मतलब कार का दिल इन्हीं से धड़कता है। अब जब ये ही नहीं मिलेंगे तो प्रोडक्शन रुकना तो तय है।

Swift रुकी, EV Vitara की रफ्तार घटी

सबसे पहला झटका लगा Suzuki को। कंपनी ने अपनी पॉपुलर Swift हैचबैक का प्रोडक्शन रोक दिया है। वहीं Maruti ने अपने अपकमिंग EV मॉडल – e-Vitara – की प्रोडक्शन टारगेट को 26,500 यूनिट से घटाकर सिर्फ 8,200 यूनिट कर दिया है। यानी सपनों की गाड़ी फिलहाल ख्वाब ही बनी रह जाएगी।

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और सिर्फ भारत ही नहीं, चीन के इस फैसले ने Ford, BMW, Mercedes और Nissan जैसी बड़ी कंपनियों की भी नींद उड़ा दी है। उन्हें भी प्रोडक्शन कम करने या रोकने की नौबत आ गई है।

चीन का 90% कंट्रोल और भारत की चिंता

अब बात करते हैं असली टेंशन की। रेयर अर्थ मैग्नेट की ग्लोबल सप्लाई पर चीन का कंट्रोल 90% से भी ज्यादा है। यानी पूरी दुनिया की गाड़ियाँ, मोटर, पंखे और बैटरियाँ इसी एक देश की मेहरबानी पर चलती हैं। अब जब चीन ने अपने दरवाजे बंद करने शुरू कर दिए हैं, तो भारत समेत बाकी देशों को या तो विकल्प ढूँढने होंगे या पुरानी आदतों की ओर लौटना होगा।

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गांव-देहात में जहां पहले से ही सस्ते ट्रांसपोर्ट का बोलबाला है, वहां फिर से टेंपो और बसों की डिमांड बढ़ सकती है। आखिर जब अपनी गाड़ी बनने लगे महंगी या मिलना ही बंद हो जाए, तो जनता क्या करेगी?

बाइक वालों की भी छुट्टी तय?

ये संकट सिर्फ कारों तक सीमित नहीं है। TVS और Bajaj जैसी बाइक कंपनियों ने भी साफ कहा है कि अगर यही हाल रहा, तो उनका उत्पादन भी ठप हो सकता है। मतलब शहर ही नहीं, गांव के नौजवान जो EMI पर बाइक खरीदने का सपना देख रहे हैं, उन्हें भी झटका लग सकता है।

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फिलहाल 40-50 ऑटोमोबाइल कंपनियों और पार्ट सप्लायरों के अधिकारी चीन में बैठकों की तैयारी में हैं। सबको अब वहां की सरकार से अप्रूवल का इंतजार है, ताकि बात आगे बढ़ सके। लेकिन कब तक? ये सवाल सबसे बड़ा है।

क्या फिर लौटेगा बस और टेंपो का ज़माना?

अगर यही हाल रहा तो आम जनता को फिर से वही पुराना रास्ता अपनाना पड़ेगा – पब्लिक ट्रांसपोर्ट। गांव में साइकिल से निकलने वाला फिर से बस पकड़ने लगेगा। शहरों में कैब की बजाय मेट्रो और ऑटो की लाइन लगेगी। और हो सकता है कि किसी दिन हमें फिर से वो बोर्ड दिख जाए – “स्विफ्ट बुकिंग बंद है, Vitara वेटिंग में है।”

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जुगाड़ का देश है अपना, लेकिन कब तक?

भारत ने हमेशा जुगाड़ से काम चलाया है। चाहे वो गैस की टंकी पर लकड़ी का स्टोव हो या ट्रैक्टर से गाड़ी खींचना। लेकिन सवाल ये है कि क्या इतनी बड़ी ऑटो इंडस्ट्री जुगाड़ से चलेगी? अगर चीन की ये चाल लंबी चली, तो ऑटो सेक्टर को अपनी रणनीति बदलनी ही पड़ेगी। शायद हमें अपने देश में ही रेयर अर्थ मैग्नेट का विकल्प ढूँढना होगा या फिर चीन पर निर्भरता कम करनी पड़ेगी।

जैसे शतरंज में एक चाल पूरी बाज़ी पलट देती है, वैसे ही चीन का ये फैसला पूरी ऑटो इंडस्ट्री की शक्ल बदल सकता है। कार प्रोडक्शन, रेयर अर्थ मैग्नेट और चीन – ये तीन कीवर्ड अब हर ऑटो कंपनी की मीटिंग में गूंज रहे हैं। जनता को बस इतना जानना है कि अगली बार जब वो Swift की चाबी घुमाए, तो इंजन स्टार्ट हो या न हो, दिक्कत चीन की तरफ से आई है।

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यह लेख केवल सूचना के लिए है। किसी भी निर्णय से पहले स्वयं शोध करें। लेखक या प्रकाशक गलत जानकारी या नुकसान के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं।

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