Air India Plane Crash : जब कोई बड़ा विमान हादसा होता है, तो सबसे पहला सवाल यही उठता है – इतने बड़े धमाके में सब कुछ जलकर खाक हो गया, लेकिन ब्लैक बॉक्स कैसे बच गया? हाल ही में Air India Plane Crash में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। अहमदाबाद में 242 यात्रियों को लेकर उड़ा विमान क्रैश होते ही आसमान धुएं से भर गया। लेकिन जैसे ही बचाव टीम पहुँची, सबसे पहले जिस चीज की खोज शुरू हुई, वो था ब्लैक बॉक्स। अब इस ‘जादुई डब्बे’ को लेकर लोगों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। आइए, आज आपको देसी अंदाज़ में बताते हैं कि आखिर यह ब्लैक बॉक्स होता क्या है, क्यों इतना जरूरी होता है और कैसे ये इतनी भयानक तबाही में भी बचा रह जाता है।
Air India Plane Crash के बाद सबसे पहले ब्लैक बॉक्स की तलाश क्यों?
जब भी कोई Air India Plane Crash या किसी भी फ्लाइट का हादसा होता है, तो जांच एजेंसियां सबसे पहले जिस चीज की तलाश करती हैं, वो है ब्लैक बॉक्स। असल में इसका असली नाम “Flight Data Recorder” यानी FDR और “Cockpit Voice Recorder” यानी CVR होता है। ये बॉक्स पूरे सफर के दौरान विमान में क्या-क्या हुआ, किसने क्या कहा, पायलट ने कौन से बटन दबाए, कौन-सी अलार्म बजे—सब कुछ रिकॉर्ड करता है। अब सोचिए, जब प्लेन का हर पत्ता उड़ा दिया हो, तब अगर कोई चीज बच जाए जो पूरी कहानी सुना दे, तो उसकी कीमत क्या होगी?
ब्लैक बॉक्स क्यों है इतना मजबूत और जरूरी?
Air India Plane Crash जैसी घटना में हर सेकंड की रिकॉर्डिंग जरूरी होती है, ताकि जांच में सच बाहर आ सके। इसलिए ब्लैक बॉक्स को बहुत ही मजबूत बनाया जाता है। इसे टाइटेनियम या स्टेनलेस स्टील से तैयार किया जाता है, जो ना सिर्फ गर्मी बल्कि 1100 डिग्री सेल्सियस तक की आग में भी सही सलामत रह सकता है। इसे ऐसा डिजाइन किया जाता है कि 3400 जी तक के भारी झटकों को भी झेल सके। मतलब, अगर प्लेन 500 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से भी गिर जाए, तब भी ब्लैक बॉक्स अंदर से सही सलामत रह सकता है।
Air India Plane Crash के बाद ब्लैक बॉक्स कैसे ढूंढा गया?
जैसे ही Air India Plane Crash की खबर सामने आई, अहमदाबाद के मेघानीनगर इलाके में एनडीआरएफ, पुलिस, फायर ब्रिगेड और एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो की टीम तैनात कर दी गई। सबसे पहले इलाके की घेराबंदी की गई और फिर मलबे को हटाकर ब्लैक बॉक्स की खोज शुरू की गई। दरअसल, ब्लैक बॉक्स के अंदर एक लोकेटर बीकन होता है जो हादसे के बाद लगातार 30 दिनों तक अल्ट्रासोनिक सिग्नल भेजता रहता है। अगर विमान पानी में गिरा हो तब भी यही बीकन मदद करता है। इस टेक्नोलॉजी की वजह से ही ब्लैक बॉक्स को ढूंढना आसान हो जाता है, चाहे वो ज़मीन पर हो या समंदर में।
ब्लैक बॉक्स से क्या पता चलेगा Air India Plane Crash का कारण?
अब जब ब्लैक बॉक्स बरामद कर लिया गया है, तो जांच एजेंसियों को उम्मीद है कि इससे पता चल जाएगा कि Air India Plane Crash का असली कारण क्या था। क्या इंजन में कोई गड़बड़ी थी? क्या पायलट से कोई चूक हुई? या कोई बाहरी वजह थी, जैसे बर्ड हिट या तकनीकी खामी? इन सभी सवालों के जवाब ब्लैक बॉक्स के अंदर रिकॉर्ड हुए डेटा और कॉकपिट की बातचीत से मिलते हैं। इससे न सिर्फ इस क्रैश की वजह साफ होगी, बल्कि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं से बचने के लिए जरूरी कदम भी उठाए जा सकेंगे।
ब्लैक बॉक्स का रंग काला क्यों नहीं होता?
अब एक देसी सवाल – जब इसका नाम ‘ब्लैक बॉक्स’ है, तो ये काला क्यों नहीं होता? असल में, ब्लैक बॉक्स नारंगी रंग का होता है, ताकि वह मलबे के बीच दूर से ही दिख जाए। इसका रंग तेज ऑरेंज इसलिए चुना गया है ताकि खोजबीन में दिक्कत ना आए। तो अगली बार जब कोई कहे कि ब्लैक बॉक्स काला होता है, तो समझ जाइए कि नाम भले ब्लैक हो, लेकिन असलियत में यह चटक रंग का होता है।
Air India Plane Crash जैसी दर्दनाक घटना में जहां इंसानी जानें नहीं बच पातीं, वहीं ब्लैक बॉक्स एकमात्र ऐसा साथी बनता है जो हादसे की सच्चाई सामने लाता है। ये ना रोता है, ना चिल्लाता है, लेकिन चुपचाप सारी बातें रिकॉर्ड करता रहता है। यह डिब्बा टेक्नोलॉजी की ऐसी मिसाल है, जो मरते हुए भी पूरी कहानी कह जाता है। यही वजह है कि दुनियाभर की एयरलाइंस इसके बिना उड़ान भरने का सोच भी नहीं सकतीं।
तो जब अगली बार किसी विमान दुर्घटना की खबर आए, तो यह समझिए कि सबसे जरूरी काम होता है ब्लैक बॉक्स खोजना, क्योंकि वही बताएगा – कौन सही था, कौन गलत और असल वजह क्या थी।
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